( The Making Of Regional Cultures )
◼️ महोदयापुरम ( Mahodayapuram ) का चेर ( Cher ) आज केरल राज्य का हिस्सा है |
🔹चेर शासकों ने मलयालम ( Malyalam ) भाषा में अभिलेख स्थापित किए | यह किसी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के सबसे पहले उदाहरणों में से एक है |
🔹 मलयालम की आरंभिक रचनाएं संस्कृत ग्रंथों के आधार पर लिखी गई | 14वीं सदी का ग्रंथ ‘लीला तिलकम’ ( Leelatilkam ) व्याकरण व काव्यशास्त्र विषयक ग्रंथ है |
🔹मलयालम भाषा में रचित यह ग्रंथ ‘मणिप्रावलम’ ( Manipravalam ) शैली में लिखा गया था मणि प्रवाल का शाब्दिक अर्थ है हीरा तथा मूंगा जो यहां दो भाषाओं संस्कृत व क्षेत्रीय भाषा की ओर संकेत करता है |
◼️जगन्नाथी संप्रदाय ( Jagannathi Sampraday ) :- जगन्नाथ ( Jagannath ) का शाब्दिक अर्थ है – दुनिया का स्वामी जो विष्णु का पर्याय है |
🔹पुरी ( Puri, Orisa ) का जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा में है | ‘जगन्नाथ’ एक स्थानीय देवता थे जिन्हें बाद में विष्णु का अवतार मान लिया गया |
🔹12वीं सदी में गंग वंश ( Gang Vansh ) के प्रतापी राजा अनंतवर्मन ( Anant Varman ) ने पुरी में पुरुषोत्तम जगन्नाथ का एक मंदिर बनवाया |
🔹बाद में अनंतवर्मन तृतीय ने (1230 ईo ) अपना राज्य पुरुषोत्तम जगन्नाथ को अर्पित कर दिया और स्वयं को जगन्नाथ का प्रतिनियुक्त घोषित किया |
◼️ बीकानेर के राजकुमार राजसिंह की कहानी काव्यों व गीतों में सुरक्षित है |
🔹 स्त्रियों को भी इन कहानियों व गीतों में स्थान प्राप्त था |सती प्रथा वीरता का द्योतक मानी जाती थी |
◼️ कत्थक:- ‘कत्थक’ शब्द ‘कथा’ शब्द से निकला है जिसका प्रयोग संस्कृत तथा अन्य भाषाओं की कहानी के लिए किया जाता है |
🔹कत्थक ( Katthak ) मूल रूप से उत्तर भारत के मंदिरों में कथा सुनाने वालों की एक जाति थी |
🔹 15वीं-16वीं सदी में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कत्थक एक विशिष्ट नृत्य-शैली का रूप धारण करने लगा | 🔹 कत्थक के माध्यम से राधा-कृष्ण के पौराणिक आख्यान लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किए जाते थे जिन्हें ‘रासलीला'( Ras Leela ) कहा जाता था |
🔹आगे चलकर कत्थक दो घरानों में फला-फूला | राजस्थान के राज दरबारों में व लखनऊ में |
🔹अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ( Vajid Ali Shah ) के संरक्षण में यह एक प्रमुख कला के रूप में उभरा |
🔹द्रुतपद संचालन, उत्तम वेशभूषा व अभिनय के माध्यम से कहानियों का प्रस्तुतीकरण कत्थक की विशेषताएं हैं |
🔹 स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कत्थक को छह शास्त्रीय नृत्य रूपों में मान्यता मिल गई | यह छह शास्त्रीय नृत्य हैं – कत्थक, कथकली, ओडिसी, भारतनाट्यम, कुचीपुड़ी तथा मणिपुरी |
🔹 कत्थक उत्तर भारत, कथकली केरल, ओडीसी उड़ीसा, भारतनाट्यम तमिलनाडु ( दक्षिण भारत), कुचिपुड़ी आंध्रप्रदेश तथा मणिपुरी मणिपुर के नृत्य माने जाते हैं |
◼️ ‘बसोहली’ ( Basohali ) चित्रकला की एक शैली थी जिसका विकास हिमाचल प्रदेश के इर्द-गिर्द हिमालय की तलहटी में हुआ | इस शैली में भानु दत्त ( Bhanu Datt ) की पुस्तक ‘रसमंजरी’ ( Ras Manjari ) चित्रित है |
◼️ 1739 ईस्वी में नादिरशाह ( Nadirshah ) के आक्रमण के समय मुगल कलाकार पहाड़ी प्रदेशों में पलायन कर गए जिसके परिणाम स्वरूप ‘कांगड़ा शैली’ ( Kangda Shaily ) विकसित हुई | नीले व हरे रंगों का प्रयोग इस शैली की विशेषता थी |
◼️ बंगाल :- बंगाली भाषा संस्कृत से विकसित मानी जाती है सातवीं सदी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ( Huen svang ) ने पाया कि बंगाल में सर्वत्र संस्कृत से संबंधित भाषाओं का प्रयोग हो रहा था |
🔹1586 ईस्वी में अकबर ( Akabar) ने बंगाल पर विजय हासिल की और इसे सूबा ( प्रान्त ) माना गया तब प्रशासन की भाषा फारसी थी परंतु बंगाली क्षेत्रीय भाषा के रूप में विकसित हो रही थी |
🔹 बंगाली भाषा के प्रारंभिक साहित्य को दो भागों में बांटा जा सकता है | एक श्रेणी संस्कृत की ऋणी है और दूसरी स्वतंत्र | 🔹पहली श्रेणी में संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद (मंगल काव्य ) तथा भक्ति साहित्य, जैसे चैतन्य देव की जीवनियां शामिल हैं | 🔹दूसरी श्रेणी में नाथ साहित्य शामिल है जैसे मैनामति-गोपीचंद्र के गीत व धर्म ठाकुर के गीत | यह कृतियां मौखिक रूप से कही सुनी जाती थी |
◼️ ‘पीर’ फारसी भाषा का शब्द है ; जिसका अर्थ है – आध्यात्मिक मार्गदर्शक |
◼️ दोचाला ( Dochala ) और चौचाला ( Chauchala ) मंदिरों के प्रकार थे | दोचाला का अर्थ होता है- दो छतों वाली व चौचाला का अर्थ है- चार छतों वाली |
◼️ ‘बृहदधर्म पुराण’ ( Brihaddharm Puran ) बंगाल में रचित 13वीं सदी का संस्कृत ग्रंथ है इस ग्रंथ में स्थानीय ब्राह्मणों को कुछ खास किस्म की मछली खाने की अनुमति दी गई है |
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